चीजें भूल जाना, एकाग्रता की कमी जैसी मानसिक परेशानियों से पड़ता जूझना
मां बनना दुनिया का सबसे खूबसूरत अहसास है। यह जितना खूबसूरत है, उतना ही मुश्किलों भरा भी है। महिलाओं को प्रकृति से मां बनने का वरदान तो मिला है, लेकिन इसकी प्राप्ति के लिए उन्हें कठोर तप करना पड़ता है। प्रेग्नेंसी का न केवल महिला के शरीर पर असर पड़ता है, पर साथ-साथ ही उसके मस्तिष्क पर भी उतना ही गहरा असर होता है।
नौ महीनों में वह कई तरह के शारीरिक और मानसिक कष्ट सहती है। इस दौरान बार-बार उसके धैर्य की परीक्षा होती है, उसे कई त्याग करने होते हैं और तब जाकर उसकी गोद में मुस्कराती है जिंदगी। प्रेग्नेंसी और पेरेंटहुड का असर जब महिला के दिमाग पर पड़ता है तो उसे प्रेग्नेंसी ब्रेन या फिर मम्मी ब्रेन कहते हैं। इसे कई और नामों से भी जाना जाता है जैसे मॉमनेशिया। दरअसल, गर्भावस्था में जिस महिला को प्रेग्नेंसी ब्रेन होता है, उसकी याददाश्त थोड़ी कमजोर हो जाती है, या फिर वह चीजें जल्दी-जल्दी भूलने लगती है।
बहुत सी महिलाएं गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद इस समस्या से जूझ रही होती हैं। लेकिन इसके बारे न तो उन्हें सही जानकारी होती है और न ही वे किसी से यह शेयर कर पाती हैं। नेचर न्यूरो साइंस में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, गर्भावस्था के दौरान और मां बनने के बाद महिलाओं के मस्तिष्क में कई जगह ग्रे-मैटर की मात्रा कम हो जाती है। ग्रे-मैटर मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में एक प्रकार का टिशू है, जो आपको दिन-प्रतिदिन सामान्य रूप से कार्य करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रेग्नेंसी ब्रेन के क्या हैं लक्षण
प्रेग्नेंसी ब्रेन एक सामान्य और अस्थायी अवस्था है और ये प्रसव के बाद ठीक हो जाती है। जरूरी नहीं कि इस समस्या से हर महिला गुजरे ही, लेकिन कई महिलाओं के लिए यह गर्भावस्था का एक सामान्य हिस्सा है। अमेरिका और यूरोप में लोग इसे गंभीरता से लेते हैं, लेकिन भारत जैसे देशों में इसे ज्यादातर नजरअंदाज कर दिया जाता है।
यूनिवर्सिटी आॅफ ब्रिटिश कोलंबिया में पब्लिश एक रिसर्च के मुताबिक, प्रेग्नेंसी के बाद महिलाओं के मस्तिष्क में काफी बदलाव होते हैं। खासतौर पर उनकी सोचने-समझने और महसूस करने की शक्ति पर मां बनने के बाद बहुत असर पड़ता है। प्रेग्नेंसी ब्रेन की शुरूआत गर्भावस्था के पहले तीन-चार महीने से शुरू हो सकती है। प्रेग्नेंसी के दैरान शरीर में कई हार्मोन्स रिलीज होते हैं और जैसे-जैसे इनकी मात्रा बढ़ती है, वैसे-वैसे ही मस्तिष्क में भी बदलाव आने लगते हैं।