इसे शुरुआती चरणों में पहचानना कठिन, 50 की उम्र के बाद बढ़ जाता है खतरा
पिछले 5-10 वर्षों में पैंक्रियाटिक कैंसर के मामलों में तेजी देखी गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी मुख्य वजह बदलती जीवनशैली और अस्वास्थ्यकर आहार हैं। प्रोसेस्ड फूड, हाई-फैट डाइट और मीठे पेय पदार्थों का बढ़ता सेवन इस बीमारी का खतरा बढ़ा रहा है। पुरुषों में पैंक्रियाटिक कैंसर का जोखिम महिलाओं की तुलना में दोगुना होता है।
इसकी वजह पुरुषों में अधिक धूम्रपान और शराब का सेवन है। शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण इलाकों की तुलना में पैंक्रियाटिक कैंसर के मामले अधिक देखने को मिलते हैं, 50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में यह बीमारी अधिक पाई जाती है क्योंकि लंबे समय तक अस्वास्थ्यकर जीवनशैली के संपर्क में रहना एक बड़ा कारण है। पर्यावरणीय प्रदूषण और तनाव भी इस समस्या को बढ़ावा देते हैं। पैंक्रियाटिक कैंसर को शुरूआती चरणों में पहचानना कठिन होता है। वजन कम होना, पेट दर्द, पीलिया और अचानक डायबिटीज का होना इसके प्रमुख लक्षण हैं, जो अक्सर देर से सामने आते हैं।
रोकथाम के उपाय
धूम्रपान छोड़ना सबसे प्रभावी उपाय है। साथ ही, प्रोसेस्ड फूड और मीठे पेय से परहेज, फल-सब्जियों और प्रोटीन से भरपूर आहार का सेवन करना चाहिए। नियमित व्यायाम, जैसे हर सप्ताह 150 मिनट का मध्यम-स्तर का व्यायाम, न केवल मेटाबॉलिक स्वास्थ्य सुधारता है बल्कि कैंसर के जोखिम को भी कम करता है।
नई तकनीकों से उम्मीद
नए डायग्नोस्टिक टूल, जैसे एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड (एवर), सीटी स्कैन और एमआरआई, छोटे ट्यूमर की पहचान में सहायक हो रहे हैं। डॉ. जया अग्रवाल ने बताया खासकर उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों में एवर छोटे ट्यूमर का पता लगाने में प्रभावी है, शुरूआती चरण में कैंसर का पता चलने पर सर्जरी ही इसका एकमात्र इलाज है। हालांकि, देर से पता चलने वाले मामलों में इलाज के विकल्प सीमित हो जाते हैं। नई थेरेपी जैसे टारगेटेड और इम्यूनोथैरेपी पर शोध चल रहा है, लेकिन अभी तक कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है।
जागरूकता ही बचाव का रास्ता
डॉक्टरों का मानना है कि पैंक्रियाटिक कैंसर के जोखिम कारकों को लेकर जागरूकता फैलाना और जीवनशैली में बदलाव लाना इस बीमारी को नियंत्रित करने का सबसे प्रभावी तरीका है।