अफ्रीका में ‘एमपॉक्स’ के प्रकोप को नजरअंदाज किया गया, डब्ल्यूएचओ ने दी चेतावनी
अफ्रीका में ‘एमपॉक्स’ का प्रकोप इस तथ्य का एक और उदाहरण है कि कैसे संक्रामक रोगों को ‘किसी दूसरे की समस्या’ समझा जाता है। विशेष तौर पर गरीबों व विकासशील देशों को प्रभावित करने वाली यह बीमारी अचानक विश्व के लिए अप्रत्याशित रूप से नया खतरा बन सकती है।
नजरअंदाज की गई अन्य बीमारियों के उदाहरण वेस्ट नाइल, जीका और चिकनगुनिया वायरस हैं। ‘एमपॉक्स’ का पता 1958 (बंधक बनाये गये बंदरों में, इसलिए मूल रूप से इसका नाम ‘मंकीपॉक्स’ रखा गया) में चला था और इंसानों में इसके सबसे पहले मामले की पहचान 1970 में हुई थी। इसके बाद दशकों तक वैज्ञानिकों और जन स्वास्थ्य समुदायों ने इस संक्रामक रोग को नजरअंदाज किया क्योंकि यह अफ्रीका के ज्यादातर दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में फैलने वाला एक असामान्य संक्रमण था, जिसका बाकी दुनिया में कोई नामोनिशान नहीं था। जब ‘एमपॉक्स’ ने 2022 में विकसित देशों को प्रभावित करना शुरू किया तब जाकर शोधकर्ताओं ने शोध शुरू किये और वैज्ञानिक अध्ययनों की संख्या में इजाफा हुआ। अप्रैल 2022 के बाद से ‘मेडिकल सर्च इंजन’ पर ही पिछले 60 वर्षों की अपेक्षा अधिक शोध किए गए हैं।
अफ्रीकी शोधकर्ताओं ने ‘एमपॉक्स’ के निदान, उसके उपचार और संक्रमण को रोकने वाले उपकरणों में वैश्विक निवेश को बढ़ाने की जरूरत को लेकर बार-बार आह्वान किया, जिसके बावजूद 2022-23 में ‘एमपॉक्स’ एक वैश्विक प्रकोप के रूप में सामने आया। डब्ल्यूएचओ ने मध्य अफ्रीका में ‘एमपॉक्स’ के बढ़ते मामलों को देखते हुए अब इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक जन स्वास्थ्य आपात स्थिति के रूप में घोषित कर दिया है। यह उन बीमारियों के लिए उच्चतम चेतावनी स्तर है, जो अन्य देशों के लिए जन स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न करती हैं और इनके लिए समन्वित अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है। हैरानी की वजह बना 2022 का प्रकोप इस बीमारी को ‘एमपॉक्स’ के रूप में नया नाम दिया गया लेकिन वायरस का नाम अब भी ‘मंकीपॉक्स’ ही है। इसका ‘स्मॉलपॉक्स वायरस’ से करीबी संबंध है। एमपीएक्सवी को मध्य और पश्चिमी अफ्रीका के कुछ हिस्सों में फैली बीमारी के रूप में जाना जाता था। यह मुख्य रूप से जंगली स्तनधारियों के साथ निकट संपर्क के माध्यम से फैलती है, लेकिन इस संक्रमण के मानव-से-मानव में फैलने का कोई प्रमाण नहीं है। कुछ चुनिंदा इलाकों के बाहर इस संक्रमण के इक्का-दुक्का मामले ही कभी-कभार सामने आते थे और उसमें भी संक्रमण के मामले संक्रमित यात्रियों या फिर संक्रमित छोटे स्तनधारियों के आयात के कारण सामने आते थे। हालांकि 2022 में अचानक इसमें बदलाव आया और इसका वैश्विक प्रकोप दिखा जब 116 देशों में 99,000 से अधिक मामले दर्ज किये गये।