भारत में 51% कर्मचारी प्रति सप्ताह 49 घंटे या उससे ज्यादा घंटे काम करते हैं
हाल ही में पुणे में काम करने वाली एक 26 साल की चार्टर्ड अकाउंटेंट की कथित तौर पर ज्यादा वर्कलोड के कारण असामयिक मृत्यु की खबर ने लोगों को झकझोर कर रख दिया। इस घटना ने न केवल हर किसी को परेशान किया, बल्कि टॉक्सिक वर्कप्लेस कल्चर और कॉर्पोरेट जगत में ओवरवर्क इश्यू पर एक महत्वपूर्ण बहस भी खड़ी कर दी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (आईएलओ) के मुताबिक, 2016 में लंबे समय तक काम करने के कारण स्ट्रोक और कोरोनरी हार्ट डिजीज से 7,45,000 लोगों की मृत्यु हुई, जो वर्ष 2000 की तुलना में 29% ज्यादा है। स्टडी ये भी बताती है कि 35-40 घंटे काम करने की तुलना में प्रति सप्ताह 55 या इससे अधिक घंटे काम करने से स्ट्रोक का खतरा 35% और कोरोनरी हार्ट डिजीज से मृत्यु का खतरा 17% बढ़ जाता है। जब आप आॅफिस के काम के बोझ को निपटाने के लिए एक्स्ट्रा आवर में वर्क करते हैं या ऑफिस वर्क को घर पर करते हैं, इसे ही ओवरवर्क करना कहते हैं।
अगर आप इसे रोजाना करते हैं तो ये आपकी मेंटल हेल्थ, फिजिकल हेल्थ और सोशल लाइफ पर असर डालता है। भारत दुनिया के सबसे लंबे वर्किंग आवर्स वाले देशों में से एक है, जहां कर्मचारी औसत से अधिक घंटे काम करते हैं। आईएलओ के मुताबिक यहां प्रति कर्मचारी सप्ताह में 46.7 घंटे वर्क करते हैं। साथ ही 51% कर्मचारी प्रति सप्ताह 49 या उससे ज्यादा घंटे काम करते हैं, जिससे भारत दुनिया के सबसे ज्यादा काम के घंटों वाले देशों में दूसरे स्थान पर है। आंकड़े को देखने के बाद ये तो साफ है कि भारत में 50% से अधिक लोग सप्ताह में 49 घंटे से अधिक काम करते हैं।
ये आंकड़े वाकई हैरान करने वाले हैं। हालांकि, कुछ ऐसे भी देश हैं, जहां काम के घंटे बेहद कम हैं। यहां कर्मचारियों के हितों का विशेष तौर पर ध्यान रखा जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया के विकसित देशों में लोग एक सप्ताह में 40 घंटे से भी कम काम करते हैं, जो डब्ल्यूएचओ के बताए एक स्वस्थ मानक पर भी फिट बैठता है। इनमें अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, जर्मनी, फ्रांस, रूस, ऑस्ट्रेलिया, इटली, स्वीडन और स्विटजरलैंड समेत कई विकसित देश शामिल हैं। डब्ल्यूएचओ के अनुसार एक व्यक्ति को सप्ताह में औसतन 35-40 घंटे वर्क करना चाहिए। सप्ताह में कुल 168 घंटे होते हैं।