दक्षिण अफ्रीका और युगांडा की 5000 महिलाओं पर किया गया टीके का सफल परीक्षण
ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस (एचआईवी) एक बेहद खतरनाक वायरस है। काफी समय से डॉक्टर और वैज्ञानिक इसका इलाज ढूंढ रहे हैं। हाल ही में वैज्ञानिकों ने इस मामले में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने एचआईवी इन्फेक्शन को रोकने वाला एक इंजेक्शन बनाया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह इंजेक्शन एचआईवी इन्फेक्शन रोकने में 96% तक कारगर है।
इस इंजेक्शन का नाम लेनकापाविर है। वैज्ञानिकों के अनुसार एक साल में इस वैक्सीन की दो डोज लेने से व्यक्ति एचआईवी इन्फेक्शन के खतरे से पूरी तरह सुरक्षित रहेगा। अमेरिकन बायो फार्मास्युटिकल कंपनी गलियड द्वारा जारी और न्यू इंग्लैंड जर्नल आॅफ मेडिसिन में पब्लिश डेटा के मुताबिक, लेनकापाविर टीका फेज-3 ट्रायल के दौरान एचआईवी इन्फेक्शन को रोकने में 100% तक प्रभावी था। दक्षिण अफ्रीका और युगांडा की 5000 महिलाओं पर इस टीके का सफल परीक्षण किया गया। इंडिया एचआईवी एस्टिमेशन रिपोर्ट, 2023 के मुताबिक, भारत में 25 लाख से अधिक लोग एचआईवी से पीड़ित हैं। हर साल करीब 66,400 लोग इसकी चपेट में आते हैं।
पूरी दुनिया की बात करें तो वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, साल 2023 में करीब 4 करोड़ लोग एचआईवी से पीड़ित थे। वहीं इस साल करीब 6,30,000 लोगों की इससे मौत हुई। एचआईवी एक ऐसा वायरस है, जो बॉडी के इम्यून सिस्टम पर हमला करता है। ये शरीर की व्हाइट ब्लड सेल्स को टारगेट करता है, जिससे इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है। इसके कारण टीबी, सीवियर इन्फेक्शन और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। अगर एचआईवी का सही समय पर इलाज न किया जाए तो यह एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम (एड्स) का कारण बन सकता है। एचआईवी वायरस इम्यून सिस्टम की कोशिकाओं को संक्रमित करके उसे धीरे-धीरे कमजोर करता है।
इससे किसी भी तरह की बीमारी से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है। वहीं एड्स एक मेडिकल कंडीशन है, जिसका प्राइमरी कारण एचआईवी इन्फेक्शन है। इन्फेक्शन होने पर अगर समय पर पता न चले और इलाज न मिले तो इम्यूनिटी कमजोर होती जाती है और एड्स में बदल जाती है। वहीं अगर सही समय पर एचआईवी का इलाज शुरू कर दिया जाए तो एड्स से बचा जा सकता है। इसलिए समय रहते एचआईवी इन्फेक्शन का पता लगाना बेहद जरूरी है। एचआईवी आमतौर पर संक्रमित व्यक्ति के बॉडी फ्लूइड यानी ब्लड, ब्रेस्ट मिल्क और स्पर्म के संपर्क से फैलता है। ये संक्रमित प्रेग्नेंट महिलाओं के जरिए बच्चे में फैल सकता है।