Monday, December 23, 2024
HomeDesh Videshआरक्षण के लिए धर्म परिवर्तन संविधान के साथ धोखाधड़ी

आरक्षण के लिए धर्म परिवर्तन संविधान के साथ धोखाधड़ी

सुप्रीम कोर्ट ने लगाई कड़ी फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरक्षण का लाभ पाने के लिए बिना सच्ची आस्था के धर्म परिवर्तन करना संविधान के साथ धोखाधड़ी के समान है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा, ऐसा करने से आरक्षण नीति के सामाजिक मूल्य भी नष्ट होंगे। जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के 24 जनवरी, 2023 के आदेश के खिलाफ सी सेल्वरानी की याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने जिला प्रशासन को अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश देने की मांग वाली महिला की याचिका खारिज कर दी थी, जिसके खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी।

पीठ ने कहा, संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत प्रत्येक नागरिक को अपनी पसंद के धर्म का पालन करने और मानने का अधिकार है। यदि धर्म परिवर्तन का मकसद मुख्य रूप से आरक्षण का लाभ प्राप्त करना हो, तो इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता ईसाई धर्म को मानती है और नियमित रूप से चर्च में जाकर इसका सक्रिय रूप से पालन करती है। इन सब के बावजूद, वह हिंदू होने का दावा करती है और रोजगार के मकसद से अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र चाहती है। उसका यह दोहरा दावा स्वीकार करने के काबिल नहीं है।

हिंदू धर्म अपनाने पर विवाद
पीठ ने कहा, अपीलकर्ता ने दोबारा हिंदू धर्म अपनाने का दावा किया है, लेकिन इस पर विवाद है। धर्मांतरण किसी समारोह या आर्य समाज के माध्यम से नहीं हुआ था। कोई सार्वजनिक घोषणा नहीं की गई थी। रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह दशार्ता हो कि उसने या उसके परिवार ने हिंदू धर्म में पुन: धर्मांतरण किया है। इसके विपरीत, एक तथ्यात्मक निष्कर्ष यह है कि अपीलकर्ता अब भी ईसाई धर्म को मानती है।
आरक्षण के मूल मकसद के खिलाफ
अपीलकर्ता बपतिस्मा के बाद भी खुद को हिंदू के रूप में पहचानना जारी नहीं रख सकती। इसलिए, उसे अनुसूचित जाति का दर्जा प्रदान करना, आरक्षण के मूल उद्देश्य के खिलाफ होगा और संविधान के साथ धोखाधड़ी होगी।
बयान विश्वसनीय नहीं
अपीलकर्ता ने दावा किया, उसकी मां ईसाई थी और शादी के बाद हिंदू धर्म अपना लिया था। उसके पिता, दादा-दादी और परदादा-परदादी हिंदू धर्म को मानते थे और वल्लुवन जाति से थे, जिसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश, 1964 के तहत अनुसूचित जाति में मान्यता प्राप्त है। उसने यह भी कहा, द्रविड़ कोटे के तहत रियायतों का लाभ उठाकर स्कूली शिक्षा और स्नातक की पढ़ाई पूरी की। इस पर पीठ ने कहा, यह मानते हुए भी कि अपीलकर्ता की मां ने शादी के बाद हिंदू धर्म अपना लिया था, उसे अपने बच्चों को चर्च में बपतिस्मा नहीं देना चाहिए था। इसलिए अपीलकर्ता का बयान अविश्वसनीय है।
कोर्ट की अंतरात्मा को झकझोरने वाले निष्कर्ष हों तभी दखल उचित
माता-पिता का विवाह ईसाई एक्ट में पंजीकृत : कोर्ट ने यह भी कहा कि फील्ड सत्यापन से स्पष्ट है कि भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872 के तहत अपीलकर्ता के माता-पिता का विवाह पंजीकृत था। अपीलकर्ता और उसके भाई का बपतिस्मा हुआ था और यह भी तथ्य था कि वे नियमित रूप से चर्च जाते थे।
अदालत ने कहा कि तथ्यों के निष्कर्षों में कोई भी हस्तक्षेप अनुचित है, जब तक कि निष्कर्ष इतने विकृत न हों कि अदालत की अंतरात्मा को झकझोर दें।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments