IPO और बेहतर विकास संभावनाएं बनीं प्रमुख कारण
पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने इस तिमाही में भारतीय शेयर बाजार में 87,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश किया है, जो जून 2023 के बाद किसी तिमाही में सर्वाधिक निवेश है। वृद्धि की बेहतर संभावना, वैश्विक सूचकांकों में भार बढ़ने और बड़े आकार के आरंभिक सार्वजनिक निर्गमों (आईपीओ) ने बाजार में विदेशी निवेश खींचने में अहम भूमिका अदा की है। दिसंबर 2023 में खत्म हुई तिमाही में 53,036 करोड़ रुपये निवेश के बाद वर्ष 2024 की पहली दो तिमाही (मार्च और जून तिमाही) में एफपीआई का निवेश घट गया था। मार्च 2024 में खत्म तिमाही में विदेशी निवेशकों ने शुद्ध रूप से 8,786 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे थे और जून तिमाही में उन्होंने 3,040 करोड़ रुपये की शुद्ध बिकवाली की थी।
देश में लोक सभा चुनाव की अनिश्चितता और उसके नतीजे बाजार की उम्मीदों के अनुरूप नहीं रहने से विदेशी निवेश का प्रवाह घट गया था। मगर एफपीआई प्राथमिक बाजार में खूब लिवाली कर रहे थे। मार्च में खत्म हुई तिमाही के दौरान विदेशी निवेशकों ने प्राथमिक बाजार में 13,013 करोड़ रुपये का निवेश किया था और इससे अगली तिमाही में 22,030 करोड़ रुपये लगाए थे। प्राथमिक बाजार में आईपीओ, एफपीओ, राइट निर्गम और क्यूआईपी शामिल हैं। इस साल भारत में आईपीओ का बाजार गुलजार रहा है। अगस्त 2024 तक 50 कंपनियां आईपीओ के जरिये कुल 53,453 करोड़ रुपये जुटा चुकी हैं। कई बड़े आईपीओ आने वाले महीनों में बाजार में दस्तक देने की तैयारी कर रहे हैं। नई सूचीबद्ध फर्मों पर नजर रखने वाला बीएसई आईपीओ इंडेक्स 2024 में अभी तक 38 फीसदी चढ़ गया है। सितंबर तिमाही में एफपीआई फिर से सेकंडरी मार्केट में लौट आए और इस तिमाही में शेयरों की कुल खरीद इस साल पहली बार प्राथमिक बाजार में किए गए निवेश को पार कर गई।
भारत में पैसिव फंडों में निवेश और बढ़ेगा
भारत का भार बढ़ रहा है जिससे पैसिव फंडों में निवेश और बढ़ेगा। ऊंचे मूल्यांकन के बावजूद भारत की विकास गाथा इसे एफपीआई के लिए निवेश का सही ठिकाना बना रही है। प्रतिकूल भू-राजनीतिक घटनाक्रम और अमेरिकी चुनाव से कुछ उठापटक दिख सकती है। दर में 50 आधार अंक की कटौती करने के बाद अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने इस साल दो बार और दर घटाने का संकेत दिया, जिससे विशेषज्ञों का कहना है कि एफपीआई का निवेश अभी बना रहेगा क्येंकि उन्हें अच्छा रिटर्न मिल रहा है। ब्याज दर में कटौती के कारण शुरूआत में बाजार में थोड़ा उत्साह दिखेगा और निवेशक ज्यादा जोखिम लेने के लिए तैयार रह सकते हैं। मगर दर में कटौती विदेशी निवेश बढ़ने की गारंटी नहीं है क्योंकि बीते कई मौकों पर फेड कटौती के बावजूद बाजार का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है। देखना होगा कि सितंबर तिमाही में कंपनियों के नतीजे कैसे रहते हैं और उनसे बाजार का ऊंचा मूल्यांकन वाजिब लगता है या नहीं।