परिवारों की वित्तीय संपत्तियां पहुंची जीडीपी के 135 प्रतिशत पर
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के जुलाई बुलेटिन में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि भारत में हालांकि बाजार आधारित माध्यमों की हिस्सेदारी बढ़ रही है लेकिन जमा अब भी बचत का सबसे पसंदीदा साधन है। यह लेख 2011-12 से 2022-23 तक के लिए परिवारों के तिमाही वित्तीय बही-खाते और उनकी शुद्ध वित्तीय संपत्ति का अनुमान प्रदान करता है। यह लेख अनुपम प्रकाश, सूरज एस, ईशु ठाकुर और मौसमी प्रियर्दिशनी द्वारा लिखा गया है। ये सभी आरबीआई के आर्थिक एवं नीति अनुसंधान विभाग के अधिकारी हैं।
लेख में कहा गया, वित्तीय परिसंपत्तियों और शुद्ध वित्तीय संपदा का संचयन 2020-21 में परिवहन और व्यय पर कोविड महामारी के कारण लगाए गए प्रतिबंधों तथा देनदारियों में धीमी वृद्धि के कारण बढ़ा। कोविड महामारी पूर्व स्थिति में वापसी के साथ घरेलू उपभोग में वृद्धि के कारण शुद्ध वित्तीय संपदा में कुछ सामान्यीकरण हुआ है। लेख के अनुसार, मार्च, 2023 के अंत तक परिवारों की वित्तीय संपत्तियां सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 135 प्रतिशत थीं, जबकि उनकी वित्तीय देनदारियां जीडीपी का 37.8 प्रतिशत थीं। इस प्रकार उनकी शुद्ध वित्तीय संपत्ति जीडीपी का 97.2 प्रतिशत थी। कोविड-19 महामारी के दौरान वित्तीय परिसंपत्तियों में हुई वृद्धि के कारण मार्च, 2020 के अंत से मार्च, 2023 के अंत तक शुद्ध वित्तीय संपत्ति में 12.6 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई। लेख में कहा गया, दिसंबर, 2021 के अंत तक परिवारों की सूचीबद्ध इक्विटी संपत्ति जीडीपी के 19.4 प्रतिशत के शिखर पर पहुंच गई, जो बाद में मार्च, 2023 के अंत तक जीडीपी के 14.9 प्रतिशत तक कम हो गई।
छोटे ग्राहकों की कर्ज जरूरतों को पूरा करने पर ध्यान देने की जरूरत
बैंक अधिकारियों की यूनियन एआईबीओसी ने वित्तीय समावेशन के विस्तार और छोटा कर्ज लेने की मंशा रखने वाले लोगों की जरूरतों को पूरा करने पर ध्यान देने की जरूरत बताई है। अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ ने बैंक
राष्ट्रीयकरण दिवस की पूर्व संध्या पर बयान में कहा कि देश के विभिन्न भागों से किसानों की आत्महत्या की खबरें आ रही हैं। ये एनबीएफसी/साहूकारों के अत्यधिक ब्याज वसूलने तथा कृषि उत्पादों की कम कीमत के कारण हैं। बयान के अनुसार, वित्तीय क्षेत्र को ग्रामीण इलाकों में उपस्थिति बढ़ाने की जरूरत है।