सार्थक सिनेमा के लिए जानी जाने वाली भूमि पेडनेकर जितनी कटिबद्ध अपनी भूमिकाओं को लेकर हैं, उतनी ही सजग वे हिंदी को लेकर हैं। हिंदी दिवस के मौके पर वे बता रही हैं कि कैसे उनका रिश्ता हिंदी के साथ बीते सालों में बना और हिंदी ने उन्हें कैसे संवारा। हिंदी को लेकर अपनी बचपन की यादों को शेयर करते हुए भूमि बताती हैं, ‘हिंदी हमारी सबसे व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा है हिंदुस्तान की।
असल में मैं बड़ी हो रही थी, तो मं खुद को खुशकिस्मत मानती हूं और अपनी मां का धन्यवाद अदा करना चाहती हूं , जो उन्होंने मुझे एक ऐसे स्कूल में दाखिल किया, जहां हिंदी अनिवार्य थी। मैं इस बात को लेकर गर्व महसूस कर सकती हूं कि अपनी समकालीनों में मैं हिंदी लिख और पढ़ सकती हूं। बोल तो सभी लेते हैं, मगर लिखना-पढ़ना सभी नहीं कर पाते। मुझे लगता है मेरी हिंदी और संवर सकती है।
भूमि अपने स्कूली दिनों को याद करते हुए बताती हैं, ‘मेरा पहला रिश्ता हिंदी से स्कूल में ही बना। ये वही दौर था, जब मुझे लगा कि शायद मुझे अभिनय के क्षेत्र में मजा आने वाला है, क्योंकि क्लास में मेरी शिक्षिका मुझे हिंदी के पाठ पढ़ने को कहा करती थीं। कई बार वे हिंदी की कहानियां होती थीं। मुझे याद है, मैंने ईदगाह पढ़ी थी। बहुत ही स्पष्ट स्मृति है। कक्षा में और भी कई कहानियां पढ़ी हैं मैंने, मगर ईदगाह को मन लगा कर पूरे भाव के साथ पढ़ना याद है मुझे। उस कहानी को पढ़ने के बाद मैं क्लास में काफी सराही गई थी।
हमारी हिंदी की टीचर गीता मैम ने मेरी काफी प्रशंसा की थी। तब से हिंदी और हिंदी कहानियों के साथ एक लगाव-सा हो गया था। स्कूल के वार्षिकोत्सव पर हम हिंदी नाटक किया करते थे। हम एक आरएसएस स्कूल में गए थे, वहां बकायदा हिंदी और संस्कृत को बहुत महत्व दिया जाता था। कॉलेज में आने के बाद जब भी मौका मिलता मैं स्टेज पर पहुंच जाती थी, चाहे वो नाटक हो या नृत्य अथवा गायन। भूमि अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहती हैं, ‘जैसा कि मैंने कहा कि कॉलेज में भी मैं सभी सांस्कृतिक गतिविधियों में आगे रहने के लिए जानी जाती थी।